गुलकंद GULKAND बनाने की विधि

 गुलकंद GULKAND




गुलकंद GULKANDनिर्माण विधि :-

 



मौसमी देशी गुलाब के ताजा फूलों की डण्डियां निकाल कर फूलों की पंखुड़ियों को अलग - अलग करके,थोड़ीसौंफ , फूलों के वजन से दोगुनी मिश्री मिला दें तदुपरान्त कलईदार बर्तन अथवा एनामेल के तसले में थोड़ी - थोड़ी उन फूलों की पंखुड़ियों और थोड़ी मिश्री को मिलाकर हाथ से मसलकर मर्तबान में डालते जायें । कुछ दिन रखा रहने पर गुलकन्द तैयार हो जाता है । कुछ लोग मर्तबान में नीचे थोड़ी मिश्री डालकर दोनों की मिश्रित तह लगाते इस प्रकार तहों को लगाकर सबसे ऊपर भी मिश्री की तह लगाते है । फिर मर्तबान का मुख बन्द करके , कपड़े मिट्टी करके 1 माह तक रखते हैं । इस प्रकार भी बनाते हैं ।* 


*#मात्रा व अनुपान- ( वयस्कों के लिए ) -1 से 2 तोला तक आवश्यकतानुसार जल अथवा गाय के दूध अनुपान के साथ सेवन करायें ।*


*#गुण व उपयोग - इस गुलकन्द का सेवन करने से दाह , पित्त दोष जलन , आन्तरिक गर्मी बढ़ना और कब्ज के विकार नष्ट होते हैं तथा मस्तिष्क को शान्ति पहँचती है । इसके सेवन से स्त्रियों के गर्भाशय की गर्मी नष्ट होकर अतिव ( मासिक धर्म अधिक होना ) रोग दूर होता है । हथेलियों व तलुवों में जलन रहना , नेत्रों में जलन होना , गर्मी के कारण आँखें लाल रहना , पसीना अधिक आना , गर्मी के कारण त्वचा का रंग काला पड़ जाना तथा शरीर में गर्मी के दाने घमौरिया ( छोटी - छोटी दानेदार पिटिकायें ) होना इत्यादि विकारों में भी खूब लाभ होता है ।*


*#गुलकन्द ( प्रवाल मिश्रित,सौंफ,जावित्री,ईलायची )*


*#निर्माण विधि पूर्वोक्त / उपरोक्त विधि से बनाये हुए से*

*100 तोला गुलकन्द में 1 तोला 4 रत्ती ( प्रवाल पिष्टी,थोड़ी सौंफ,जावित्री व हरि इलायची) मिलाकर रखने से प्रवाल मिश्रित गुलकन्द बन जाता है । मात्रा व अनुपान-( वयस्कों के लिए ) -6 माशा से 1 तोला तक आवश्यकतानुसार जल अथवा गाय के दूध के अनुपान के साथ सेवन करायें । गुणा व उपयोग - चूँकि इस गुलकन्द में - प्रवाल का मिश्रण है । अत : इस कारण यह उपरोक्त ( प्रवाल रहित ) ' गुलकन्द से अधिक गुणकारी है । इसमें गुलकन्द के साथ ही साथ प्रवाल के गुणों का भी समावेश रहता है , जिससे यह - कब्ज , प्यास की अधिकता , गर्मी अधिक बढ़ जाना , उच्च रक्तचाप ( ब्लड प्रैशर ) , दाह , पित्तदोष तथा रक्तपित्त आदि रोग - विकारों को नष्ट करता है!* *स्त्रियों के गर्भाशयिक दोषों को नष्ट करता है । गर्मी के कारण नेत्रों में जलन होना , आँखों से गर्म आँसू / पानी निकलना , मूत्र लाल रंग का गर्म व जलन युक्त होना , पसीना अधिक आना , खाज* *खुजली . गर्मी के दाने* *( घमौरिया ) निकलना , तथा त्वचा ( SKIN ) का रंग काला पड़ जाना आदि विकारों में अत्याधिक गुणकारी है । बहुत से आयुर्वेद प्रेमी एवं जानकर लोग इसको गर्मी के मौसम में प्रतिदिन प्रातः समय सेवन करते हैं , जिससे गर्मी के कारण होने वाले विकारों के होने का भय नहीं रहता है।

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