फसल चक्र क्या है फसल चक्र का चित्र 1 भारत में फसल चक्र से कैसे खेती की जाती है।What is crop rotation, how crop rotation is done in India.

 फसल चक्र क्या है। फसल चक्र का चित्र भारत में

 फसल चक्र से कैसे खेती की जाती है।

crop rotation

फसल चक्र (Crop Rotation) एक कृषि विधि है जिसमें एक खेतीबाड़ी में एक या अधिक प्रकार की फसलों को अनुक्रमिक रूप से बोया जाता है। यह विधि वर्षों तक एक खेतीबाड़ी के मौखिक और भौतिक तत्वों को नियंत्रित करने में मदद करती है और मिट्टी की उपजाऊ गुणवत्ता को बनाए रखने में सहायता प्रदान करती है।

फसल चक्र के मुख्य उद्देश्यों में से एक है प्रदायान की समस्याओं को नियंत्रित करना। जब एक ही प्रकार की फसलें बार-बार एक ही खेतीबाड़ी में बोयी जाती हैं, तो कीट, कीटाणु, रोग और खाद की मात्रा में वृद्धि हो सकती है, जिससे फसलों को प्रभावित किया जा सकता है। फसल चक्र द्वारा विभिन्न प्रकार की फसलों को लगातार बदलते रहने से इस समस्या को कम किया जा सकता है।

दूसरा मुख्य उद्देश्य है मिट्टी की सुदृढ़ता और पोषक तत्वों की बचत करना। अलग-अलग प्रकार की फसलें अलग-अलग पोषक तत्वों को मिट्टी में छोड़ती हैं और उन्हें संतुलित बनाती हैं

इसके अलावा, फसल चक्र समर्थन करने से मिट्टी की वातावरण प्रबंधन भी सुधार होता है। विभिन्न फसलों की जड़ें और ऊर्वरा आदि अलग-अलग तरीकों से मिट्टी को प्रभावित करती हैं, जिससे मिट्टी का संरक्षण होता है और उसकी फुटिंग बनी रहती है।

फसल चक्र के उदाहरण में, एक साधारण चक्र में, पहले साल गेहूं जैसी बीजाई जाती है जो ऊर्वरा फसल होती है। इसके बाद, दूसरे साल सोयाबीन जैसी लागत माँग वाली फसल बोयी जाती है, जिसे नित्रोजन जैसे पोषक तत्व को संतुलित करने के लिए लगाया जाता है। तीसरे साल, दाल जैसी रेतीली फसल बोयी जाती है, जिससे मिट्टी की सुदृढ़ता और खादी बचत होती है। इसके बाद, चौथे साल अनाज जैसी फसल बोयी जाती है जो पहले वर्ष की फसल को दोबारा लाने की प्रक्रिया को पूरा करती है।

फसल चक्र की उपयोगिता इसमें से एक सालाना फसलों की संख्या और प्रकार पर आधारित होती है, और इसे स्थानीय मौसम, मिट्टी की गुण

और कृषि प्रथाओं पर भी आधारित किया जाता है। फसल चक्र के लाभों में शामिल हैं मिट्टी की पोषकता बनाए रखना, कीटाणु और कीट प्रबंधन को सुधारना, रोग प्रबंधन को सुधारना, जल संसाधन का उपयोग कम करना, उपजाऊ फसलों की वृद्धि को बढ़ाना, और किसानों की आय को सुधारना।

इस प्रकार, फसल चक्र कृषि प्रथा उचित मान्यता प्राप्त है, और यह कृषि उत्पादन को सतत बनाए रखने और पर्यावरणीय सुस्थिति को सुधारने में मदद करती है।

किसान एक ही भूमि में ऋतु के अनुसार बदल कर सब्जियां उगाने के निश्चित क्रम को फसल चक्र कहते हैं। एक ही प्रकार की सब्जी को लगातार एक ही भूमि में लगाते रहने से अनेक प्रकार की समस्या आ जाती है। और उत्पादन भी प्रभावित हो जाता है इसलिए सब्जियों की खेती में फसल चक्र crop rotation को अपनाना चाहिए। सब्जी उत्पादन में उचित फसल चक्र crop rotation को अपनाना अनिवार्य होता है। 


फसल चक्र का चित्र


फसल चक्र क्या है भारत में फसल चक्र से कैसे खेती की जाती है।
फसल चक्र का चित्र

फसल चक्र अपनाने के उद्देश्य क्या है

  1. फसल चक्र crop rotation अपनाने का उद्देश्य भूमि में उपस्थित पोषण तत्वों को पूरी तरह से उपयोग में लाना है। इसके लिए बदल बदल के ऐसे सब्जियों को उगाना होता है। जिसके पोषक तत्व की आवश्यकता भिन्न हो तथा उनकी जड़े अलग-अलग गहराई तक फैलने वाली हो।
  2. फसल चक्र crop rotation द्वारा भूमिगत जल के स्तर के अनुसार फसलों का चुनाव करना चाहिए और मध्यम जड़े वाली और गहरी जड़े वाली सब्जियों को बदल बदल के लगानी चाहिए। जिस से भूमिगत जल का फसल में पूरा उपयोग कर सकें।
  3. भूमि के पोषक तत्व को बनाए रखने के लिए सब्जियों का क्रम बदलते रहना चाहिए। अलग-अलग सब्जियों के अलग-अलग पोषण तत्व ग्रहण करने के गुण रहते हैं। भूमि में फसल चक्र अपनाने से भूमि के पूर्ण पोषण का उपयोग फसलों में लिया जा सकता है। और पोषण तत्व  भूमि में निरंतरता बनी रहती है। इस तरह भूमि सुधार क्रम चलता रहता है।
  4. पूर्व फसल के द्वारा भूमि संक्रमित हो जाने पर भूमि को सुधार करने हेतु फसल को परिवर्तित करके लगाना पड़ता है। इस तरह भूमि सुधार के साथ-साथ उत्पादन भी बढ़ते चले जाती है।
  5. रोग एवं कीड़ों  हर सब्जियों में अलग-अलग प्रकार के होते हैं। फसल चक्र crop rotation अपनाने से रोग और कीड़ों का नियंत्रण हो जाता है।

फसल चक्र crop rotation के प्रकार एवं उनके सिद्धांत

फसल उत्पादन करने के लिए फसल चक्र अपनाने के निम्नलिखित नियम होते हैं।
  1. एक कुल की सब्जियों के उत्पादन के पश्चात दूसरे कुल के सब्जियां लगाएं टमाटर बैंगन मिर्ची सोलेनेसी कूल है। और लौकी कद्दू आदि कुकुरबिटेसी कुल का हैं।
  2. सब्जियों के द्वारा भूमि में नाइट्रोजन देने वाले फसल लगाने के उपरांत नाइट्रोजन लेने वाली फसल की बुवाई करने चाहिए। कुछ सब्जियों के जड़ों में सूक्ष्म जीवाणु होते हैं। जो वायुमंडल से भूमि में नाइट्रोजन स्थित करते हैं जैसे बरबट्टी मटर बींस राहर आदि।
  3. अधिक जल चाहने वाले सब्जियों के पश्चात कम जल में उपज होने वाली सब्जियां लगाएं अधिक जल वाले टमाटर आलू बैगन साग भाजी फुल गोभी आदि जबकि मटर बरबटी मूली गाजर लहसुन आदि कम पानी दोहन करते हैं।
  4. उथली जड़ें वाली सब्जी लगाने के पश्चात गहरी जड़े वाली सब्जियां लगानी चाहिए। फूल गोभी पत्ता गोभी प्याज लहसुन मटर बींस और पत्तेदार सब्जियां उथली जड़े वाली होती है। और कद्दू लौकी कुंदरू परवल भिंडी आदि गहरी जड़े वाली सब्जियां है।
  5. कंद मूल वाली सब्जी लगाने के पश्चात पत्तेदार सब्जियां लगानी चाहिए। मूली गाजर शलजम चुकंदर के पश्चात पत्तेदार सब्जियां पालक मेथी चलाई आदि।
  6. कंद वाले सब्जी लगाने के पश्चात दाना वाली सब्जियां लगानी चाहिए। आलू प्याज शकरकंद जिमीकंद अदरक अरबी आदि तथा मटर  ग्वारफली आदि दाने वाली  सब्जियां है।


फसल चक्र क्या है भारत में फसल चक्र से कैसे खेती की जाती है।
फसल चक्र


फसल चक्र crop rotation कृषि योग्य भूमि को उपजाऊ बनाए रखता है। और संक्रमण फंगस कीट से फसलों को बचाए रखता है। फसल चक्र crop rotation के द्वारा साल भर खेती की जा सकती है। और अच्छी आमदनी अर्जित की जा सकती है।

नेचुरल फार्मिंग, प्राकृतिक खेती में फसल चक्र अपनाने की विधि।

नेचुरल फार्मिंग में फसल चक्र crop rotation अपनाना बहुत ही आसान और तुरंत ही कारगर हो पाता है। क्योंकि जुताई करने की आवश्यकता नहीं है।
 इस वजह से सही समय में फसल की बुवाई हो पाती है। प्रकृति खेती ऋषि खेती में फसल को सही समय पर बुवाई कर देते हैं।  फसल कटाई के बगैर भी अगली फसल की बुवाई हो जाती है। और पहले की फसल की अवशेष पदार्थ को भूमि में ही मंचिंग कर देते हैं। जिसे भूमि की उपजाऊ क्षमता बढ़ जाती है ।और खरपतवार से नियंत्रण भी हो जाता है। इस तरह फसल चक्र crop rotation अपनाने से प्राकृतिक खेती में भरपूर उत्पादन लिया जा सकता है। जैसे धान की कटाई से पहले मटर चने की बुवाई की जा सकती है।


खेती किसानी का उद्देश्य लालच में आकर खेती करना नहीं है। हमारा उद्देश्य पर्यावरण की सुरक्षा, जहर मुक्त भोजन व्यवस्था और किसानों को कृषि कार्य में लागत में कमी साथ ही प्राकृतिक ऋषि खेती को बढ़ावा देना।

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