पपीता की खेती कैसे करें। पपीता की खेती संबंधित जानकारी। papaya plant

 पपीता की खेती कैसे करें।

 पपीता की खेती संबंधित

 जानकारी।

papaya cultivation


पपीता papaya 8 से 10 माह में फलने वाला मध्यम ऊंचाई का पेड़ है। पपीता की सब्जी हेतु घरेलू किचन गार्डन के लिए पपीता एक अत्यंत ही लाभदायक फल है। कच्चे पपीता papaya plant को सब्जी के तौर पर खाया जाता है। पपीता की उत्पत्ति उष्ण अमेरिका है। विश्व में मलेशिया दक्षिण अफ्रीका श्रीलंका में पपीता papaya plant उगाया जाता है भारत में यह 17वीं शताब्दी में लाया गया है पपीता की खेती papaya plant अनुमानत: इसे 10000 हेक्टर खेत में उगाया जाता है। स्थाई प्रकृति का होने के कारण क्षेत्रफल निश्चित नहीं रहता है पपीता की खेती papaya plant  farming बिहार ,आसाम, गुजरात महाराष्ट्र, तमिलनाडु ,आंध्र प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में इसे प्रमुखता से उगाया जाता है।


पपीता की खेती कैसे करें। पपीता की खेती संबंधित जानकारी


पपीता के औषधीय गुण। पपीता  खाने के फायदे।

पपीता फल  papaya frut स्वादिष्ट मिठाई और पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं पपीता खाने के फायदे फलों में विटामिन ए और सी प्रमुखता से होती है पेट के रोग के लिए लाभदायक है कच्चे फलों से एक प्रकार का एंजाइम जिसे (papain ) पपैन कहते हैं और दूध के समान फलों से निकलता है  सूखा कर तैयार की जाती है जिसका व्यवसायिक महत्व है पपीता फल पकने के बाद शीघ्र ही खराब होने लगता है फलों से जैम जेली मुरब्बा आदि तैयार की जाती है।

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पपीता वृक्ष papaya plant की श्रेणी में ना कह के पौधे कहे तो ज्यादा उपयुक्त होगा।  पपीता papaya plant एक शाखी पौधा है। जो 3 से 5 मीटर ऊंचा होता है तथा अंदर से खोखला और रेशेदार होता है। जड़े अधिक गहरी नहीं जाती और और बहुत ही मुलायम होती है। पपीता 3 से 4 वर्ष तक फलने के बाद कम फल देने लगता है। इसलिए इसे समाप्त कर दूसरी पौधा लगा देनी चाहिए पौधा लगने के 8 से 10 माह में फल प्राप्त हो जाते हैं। वैसे तो वर्ष भर  कुछ ना कुछ फल देते रहते हैं। मुख्य फसल शीत ऋतु में ही प्राप्त होती है। एक पौधे से 30 से 50 किलो फल प्राप्त हो जाता है। औसतन 54 से 90 क्विंटल हेक्टेयर फल प्राप्त होते हैं।

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पपीता फल की औषधि गुण, फल के फायदे

पपीता papaya plant स्वादिष्ट ,उत्तेजक वात, और कफ कारक ,क्षुधावर्धक पाचक पेट साफ करने वाला, क्रांति और नेत्र ज्योति वर्धक। पित्तदोषनाशक उन्माद कम करता है। कच्चा पपीता कृमिनाशक, प्लीहा वृद्धि ,मोटापा कम करता है। पपैल एक एंजाइम है जो पेट के रोग में लाभदायक होता है।



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पपीते के पौधे papaya plant को तीन श्रेणी में विभाजन की जाती है

नर पुष्प, मादा पुष्प तथा उभय लिंगी पुष्प नर पुष्प पौधे में फूल लंबे डालों में लगते हैं। यह रजनीगंधा के फूल से मिलते जुलते हैं। ऐसे पौधे में फल नहीं लगते मादा पुष्प पौधे में फूल तने से लगे हुए निकलते हैं। और आकार में बड़े होते हैं इनमें फल लगते हैं। उभय लिंगी पुष्प पौधे में नर और मादा पुष्प दोनों होते हैं। तथा फल डंठल में लगती हुए रहते हैं। पौधे लगने के 3 से 4 माह में फूल आ जाती है। अतः फूलों की पहचान कर नर पुष्प वाले पौधे को उखाड़ देनी चाहिए कुल पौधे की संख्या में 5% नर उस पौधे रहना आवश्यक है। इस में परागण की क्रिया सुचारु रुप से हो पाती है। उचित परागण के अभाव में फूल झड़ जाते हैं और फल में कमी आ जाती है।

पपीते की पौधा की आवश्यकताएं

पपीते के लिए कौन सी जलवायु उपयुक्त है।

पपीता papaya plant में गर्म जलवायु उचित होती है। तापमान कम होने पेड़ पौधे मर जाते हैं। अधिक तापमान या लू में पौधे सूख जाते है। सफल उत्पादन के लिए अधिकतम और न्यूनतम तापमान 100 से 50 °F रहना चाहिए अधिक वर्षा भी हानिकारक होती है।


पपीते के पौधे के लिए उपयुक्त भूमि।

 जल निकासी युक्त किसी भी प्रकार की भूमि उपयुक्त है। भूमि में पौधे के पास जल इकट्ठा होने से तना गलन का रोग हो जाता है। पौधे की जड़ अधिक गहरी तक नहीं रह जाती है। इसलिए उथली भूमि पर ही इसे लगाया जाता है यह भूमि दोमट हो तो उत्तम है।

पपीते के लिए सिंचाई व्यवस्था

शाकीय पौध होने के कारण सिंचाई की अधिक आवश्यकता होती है। ग्रीष्म ऋतु में प्रति सप्ताह और शरद ऋतु में प्रति पखवाड़े सिंचाई करना आवश्यक है। सिंचाई का पानी तने से दूर रहना चाहिए तथा एक बार में अधिक पानी नहीं देनी चाहिए थाली पद्धति से सिंचाई करना उत्तम है। और आज के समय में ड्रिप सिस्टम से भी उपयुक्त सिंचाई की जाती है।


पौधे में खाद की आवश्यकता

पूरी तरह से प्रकृति के खेती करने पर पपीते के पौधे को खाद अधिकतम  प्रथम वर्ष से 10 किलोग्राम गोबर खाद दूसरे वर्ष 10 किलोग्राम और कितने वर्ष 15 किलोग्राम गोबर खाद की आवश्यकता होती है। पौधे लगाने की आरंभिक अवस्था में गोबर के जीवामृत बनाकर तरल रूप में पौधे को खाद दिया जा सकता है। गोबर की खाद वर्षा ऋतु के आरंभ में क्रमश: अगस्त अक्टूबर, दिसंबर, फरवरी और अप्रैल में दें। खाद हमेशा तने से दूर देनी चाहिए और हल्की सिंचाई कर ली जाए। सूखे पत्ते खरपतवार के अवशिष्ट को काट के पपीते के तने के आसपास अच्छे से मंचिग कर देने पर पपीते के पौधे को पर्याप्त नमी मिलते रहेगी। ऐसे करने से पपीते के सूक्ष्म जड़े की सुरक्षा होती है और जड़ गलन की समस्या समाप्त हो जाती है।

पपीते के पौधे papaya plant तैयार करने की तरीका।

पपीते के पौधे papaya plant बीज द्वारा तैयार की जाती है। क्यारियों में पौधे तैयार करने की अपेक्षा पॉलिथीन की थैलियों में बीज से तैयार करना उचित है। खेत में लगाने पर ऐसे पौधे की मृत्यु दर कम रहती है। पपीते के पौधे papaya plant को 2 मीटर के अंतर में लगाया जाता है। पपीते के पौधे papaya plant को मिश्रित फसल के रूप में अन्य फलों के उद्यान में सिंचाई नालियों और प्रक्षेप की सड़क मेड पर स्वतंत्र ध्यान में लगाए जाते हैं। आज के समय में पपीते की भारी मांग को देखते हुए पपीते की खेती  papaya plant को प्राथमिकता के साथ की जाती है। पपीते के पौधे लगाने के लिए डेढ़ फीट लंबा चौड़ा और गहरा गड्ढा तैयार करें। इन गड्ढों में 20 किलो गोबर खाद और मिट्टी का मिश्रण कर गड्ढे में डाल के लगाने वाले स्थान पर चिन्ह लगा दिया जाए। दीमक की आशंका होने पर नीम खली का उपयोग किया जा सकता है। वैसे भी दीमक निर्जीव वस्तु को अपना भोजन बनाती है। जीवित पेड़ पौधे में दीमक का आक्रमण नहीं होता है। जब 15 सेंटीमीटर के हो जाए तब उसे गड्ढे में लगा देनी चाहिए। पौधा रोपण करते समय पौधे को हल्का से तिरछा लगा दिया जाए। जिससे पौधे के मुख्य तना की मजबूती बढ़ते चले जाती है। और एक गड्ढे में 2 पौधे का रोपण किया जा सकता है। बीज के द्वारा भी गड्ढे में बुवाई की जा सकती है। पर्याप्त सुरक्षा का प्रबंध हो तो ऐसा करना चाहिए। जब पौधे में फूल आने लग जाए तो उन्हें पहचान कर प्रति गड्ढे  एक पौधा रखते हैं। पौधा जुलाई से लेकर सितंबर और फरवरी से अप्रैल तक लगाया जा सकता है।


पपीते के पौधे की देखभाल।

पपीता के पौधे papaya plant की पर्याप्त सुरक्षा आवश्यक है। कभी-कभी पौधे में छाया करना और टेका लगाना आवश्यक हो जाता है। पौधे के समीप पानी ना भर जाए का ध्यान रखें विषाणु रूप से प्रभावित पौधे जैसे ही दिखाई दे तुरंत ही उखाड़ कर जला देना चाहिए या दफना देना चाहिए। अत्याधिक फूल लगने पर अतिरिक्त फूल निकाल देनी चाहिए। जिससे फलों का आकार बड़ा मिलेगा और फलों को चिड़िया आदि से सुरक्षा प्रदान करें।


पपैन किसे कहते हैं कैसे तैयार की जाती है।पपैन के औषधि गुण

कच्चे पपीता को पूर्ण विकसित होने पर चीरा लगाने पर दूध निकलता है। उसे पपैन एंजाइम कहते है इससे बहुमूल्य औषधि तैयार की जाती है। यह अजीणं, डिप्थीरिया तथा खूनी बवासीर आदि रोग के लिए उपयोग की जाती है। तिल्ली को बढ़ने से रोकता है। वीर्य वर्धक, पाचन शक्ति वर्धक तथा पित्त और उन्माद शांत करता है। यकृत, हृदय, मूत्र और चर्म रोग में लाभकारी पाया गया है। अनेक औषधि औद्योगिक उत्पादन में भी उपयोग की जाती है। च्युइंगम, सौंदर्य प्रसाधन दूध को जमाने, बियर तैयार करने के काम में आता है। सौंदर्य प्रसाधन में क्रीम, दांतो के पेस्ट आदि तैयार करने के में जो की जाती है। इसका नियमित लेप करने पर चेहरे के धब्बे मिट जाते हैं। विदेशों में रूस, अमेरिका, ब्रिटेन में भारत से निर्यात की जाती है। और इसकी आपूर्ति श्रीलंका, अफ्रीका आदि देशों से भी की जाती है। इसलिए निर्यात हेतु अत्यधिक मात्रा में पपैन तैयार की जा सकती है।

पपीता जब बड़ा हो जाए ढाई से 3 माह के हो जाए तब पपैन निकालने योग्य हो जाता है। वर्षा ऋतु के आरभ से लेकर नवंबर तक इस फलों से पपैन तैयार की जाती है।
सुबह से लेकर 11:00 बजे तक फलों में दूध का प्रवाह तेज रहता है। ऐसे समय में दूध निकालना उचित है। फलों में खरोच लगने के लिए लेजर ब्लेड स्टील के चाकू या बास के बारीक लकड़ी तथा कांच के टुकड़े का उपयोग की जा सकती है। इन औजारों के फलों में0.3 20 मीटर गहरे 4 बराबर लंबाई के चीरा लगाएं। दूध निकलने पर उसे का चीनी मिट्टी या अल्मुनियम के बर्तन में इकट्ठा कर ले। यह प्रक्रिया 3 से 4 दिन के अंतर में चार या पांच बार दोहराए। जब तक कि फलों में 1 सेंटीमीटर के अंतर में खरोच ना पड़ जाए। इस प्रकार 15 से 20 दिन में फलों से दूध निकाला जा सकता है। दूध दस्ताने पहनकर निकालना चाहिए । दूध को धूप में सुखा लें या किसी भट्टी में 24 घंटे तक सूखने के लिए छोड़ दें दूध सूख जाने पर बेलन से पीसकर चूर्ण बना लेनी चाहिए। एक व्यक्ति 10 से 12 घंटा काम करके आधा किलो पपैन निकाल सकता है।
  1. उपज एक फल से 3 से 10 ग्राम एक पौधे से 200 से 450 ग्राम पपैन ।
  2. एक हेक्टेयर में 5 से 10 क्विंटल।
  3. औसत लाभ डेढ़ लाख रुपया से ढाई लाख रुपया तक प्रति हेक्टेयर आमदनी।
  4. एक हेक्टेयर में 2000 पौधे प्रति पौधा 40 से 50 फल।

कच्चे फलों से दूध के रूप में पपैन निकाले जाने से फलों के गुण, स्वाद और पोषक तत्वों में कमी नहीं आती। ऐसी धारणा गलत है। कि फल निम्न गुण वाले हो जाते हैं फलों में खरोच होने पर इसके विक्रय मूल्य में अंतर अवश्य आ जाता है। यह पपीता उत्पादन के अलावा अतिरिक्त आमदनी है। जिसे हर किसान को अपनाना चाहिए।




पपीता की खेती कैसे करें। पपीता की खेती संबंधित जानकारी



पपीते papaya plant में विषाणु रोग के निदान

पपीता की खेती papaya plant में मुख्य समस्या विषाणु रोग है। जिसकी वजह से पत्ते सिकुड़ जाते हैं। पौधों में दाग धब्बे लगने के साथ पौधे का विकास रुक जाता है। अत्यधिक बारिश में पौधारोपण करने से यह समस्या आती है इसलिए पौधारोपण करने का सही समय बारिश आने से पहले अक्टूबर माह के समय कर लेनी चाहिए। और पौधे के सुक्षम जड़ों की संरचना अत्याधिक गर्मी की वजह से भी प्रभावित हो जाती है। गर्मी से बचाव हेतु सूखे पत्तों का आवश्यक भूमि को अच्छी तरीके से मंचिग कर दी जाए। इस तरह पपीते की खेती संबंधित कार्य किए जाने से विषाणु रोग की समस्या कम हो जाती है। विषाणु रोग आने पर पपीते के पौधे को उखाड़ के गड्ढे में दबा देने की या जला देना चाहिए।

पपीते की खेती से लाभ कैसे कमाए और कौन कौन कर सकता है।

पपीते की खेती papaya plant एक साधारण किसान बहुत ही कम पूंजी से शुरू कर सकता है और पपीते की खेती से मुनाफा कमा सकता है। अच्छे नस्ल की देसी बीज से ही पपीते की खेती papaya plant शुरू करनी चाहिए और स्थानीय स्तर पर अपने निजी ग्राहकों को बेच के पैसा कमाया जा सकता है। देसी नस्ल के पपीते की आयु अधिकतम 3 से 4 साल तक रहती है। और पूरी तरह से जैविक प्राकृतिक विधि से पपीते की खेती papaya plant करने पर पपीते की गुणवत्ता और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने की संभावना रहती है। उपरोक्त अतिरिक्त सुझाव को अपनाते हुए पपीते की खेती papaya plant किसानी आसानी से की जाने वाली खेती है पपीते की खेती papaya plant की कमाई किसानों को अतिरिक्त आमदनी मिल सकता हैं पपीता सरलता से उगाए जाने वाली फसल है।


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