एक किसान जीरो बजट जीरो टिल ऋषि खेती कैसे करें। प्राकृतिक खेती


भारत में खेती-किसानी की शुरुआत मानसून के आगमन के साथ शुरू हो जाती है। ऐसे समय में किसानों farmer को अपने खेत में फसल की बुआई शुरू कर देनी चाहिए।

एक किसान जीरो बजट जीरो टिल ऋषि खेती कैसे करें।
आशा की बगिया



जीरो बजट ऋषि खेती, प्राकृतिक खेती की परंपरा भारत में सदियों से रही है। किसान kisan अपने आसपास के किसान से बीज का आदान प्रदान करता है। इस तरह किसान kisan के पास अलग-अलग नस्ल और किस्म के बीज का संग्रहण हो जाता है।

किसान kisan अपने बीज  संग्रहण हेतु अन्य किसानों farmer के खेत का भ्रमण के दौरान अच्छी फसल का चुनाव कर  किसानों farmer से अपने लिए बीज संग्रहण कर देने की विनती करता है। इस तरह आपसी लेनदेन कर किसानों farmer के पास बीज का विशाल संग्रह रहता है।जीरो बजट ऋषि खेती की शुरुआत की जाती है। बीज की लागत से शून्य होने से किसानों farmer की लागत में भारी कमी आ जाती है और परंपरागत देसी बीज का विशाल संग्रहण हो जाता है जिससे किसान kisan साल भर खेती कर पाता है।

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एक किसान जीरो बजट जीरो टिल ऋषि खेती( प्राकृतिक खेती) की शुरुआत कैसे करें।

जीरो बजट ऋषि खेती, प्राकृतिक खेती की शुरुआत हमें कुछ सावधानियों के साथ करनी होगी। ऋषि खेती करने से भूमि की उपजाऊ क्षमता बढ़ते चले जाएगी। और हमें जहर मुक्त अनाज सब्जी फल मिल पाएगा। जो स्वाद में भी उत्कृष्ट श्रेणी का रहता है। निम्नलिखित बिंदुओं को हमें जीरो बजट ऋषि खेती, प्राकृतिक खेती  में अपनाना होगा।


एक किसान जीरो बजट जीरो टिल ऋषि खेती कैसे करें।


किसान पौधे की नर्सरी तैयार करें।

ग्रीष्मकालीन जून-जुलाई में पौधे की नर्सरी तैयार करें। ऋषि खेती में खेत की जुताई नहीं करनी है। इसलिए ऋषि खेती की शुरू करने के लिए सर्वप्रथम 2 फीट से 3 फीट होने वाले फसलों का चुनाव करें। और ज्यादा घनत्व वाले पौधे चुने। जैसे बैगन मिर्ची फूल गोभी पत्ता गोभी तुवर आदि इनके तने मजबूत रहते हैं। और पौधे का व्यास क्षेत्रफल अधिक होने की वजह से खरपतवार होने पर भी बाहर निकल जा सकता हैं।

किसान जीरो बजट ऋषि खेती (प्राकृतिक खेती) पौधे की रोपाई।

ऋषि खेती प्राकृतिक खेती में खरपतवार बहुत बड़ी समस्या रहती है। किंतु खरपतवार की वजह से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सकती है। इसलिए पौधे की रोपाई एक निश्चित दूरी पर करें। लाइन से लाइन की दूरी निश्चित रहने पर खरपतवार को उखाड़ के या जमीन में दबा कर सुलाया जा सकता है। इस तरह खरपतवार खाद के रूप में परिवर्तित हो जाती है। और उपज ऋषि खेती में बहुत अच्छी होती है। 2 से 3 वर्ष उपरांत ऋषि खेती में खरपतवार की समस्या कम हो जाती है। इसलिए ऋषि खेती करना है। तो निरंतर ऋषि खेती प्राकृतिक खेती को अपनाना होगा।

एक किसान जीरो बजट जीरो टिल ऋषि खेती में प्रथम 2 से 3 वर्ष कौन सी फसल ले। (प्राकृतिक खेती)

रासायनिक कीटनाशक खेती छोड़ के ऋषि खेती अपनाने वाले किसानों को शुरू के 2 से 3 वर्ष महत्वपूर्ण रहता है। जिसमें भूमि की उपजाऊ क्षमता को बढ़ाना और कीटनाशक रसायन के प्रभाव को भूमि में कम करना निम्नांकित कुछ फसल की खेती कृषि खेती के शुरू में की जा सकती है। जिससे भूमि की उपजाऊ क्षमता बढ़ेगी और भविष्य में सफलता पूर्ण जीरो टिल जीरो बजट ऋषि खेती, प्राकृतिक खेती जा सकती है।


एक किसान जीरो बजट जीरो टिल ऋषि खेती कैसे करें।


किसान द्वारा ऋषि खेती (प्राकृतिक खेती) में कद्दू की खेती।

जीरो बजट ऋषि खेती, प्राकृतिक खेती में कद्दू की खेती आसानी से की जा सकती है। कद्दू की खेती करने से खरपतवार का नियंत्रण अच्छे से हो पाता है। क्योंकि कद्दू के पत्ते चौड़ा होने के कारण खरपतवार का नियंत्रण हो जाता है। कद्दू के पत्ते डंठल को भी बेच के बाजार से पैसा कमाए जा सकता है।

किसान द्वारा जीरो बजट कृषि खेती (प्राकृतिक खेती) में लौकी की खेती।

कृषि खेती में लौकी की खेती सफलता पूर्ण की जा सकती है। ऋषि खेती में जल निकासी  भूमि में होती रहती है। और लौकी के स्वाद भी उत्कृष्ट रहता है। इस कारण लौकी की फसल की बाजार में मांग बढ़ जाती है।

किसान जीरो बजट ऋषि खेती (प्राकृतिक खेती) में बैंगन की खेती अवश्य करें।

किसान kisan जीरो बजट ऋषि खेती, प्राकृतिक खेती में बैंगन की फसल में वास्तविक ग्रोथ अच्छा रहता है। बैंगन की खेती जैविक कार्बन के कारण अत्यधिक मात्रा में फल देते हैं। इस विधि से बैंगन की खेती सफलता पूर्ण की जा सकती है।

किसान जीरो टिल जीरो बजट खेती में टमाटर की खेती करें

जीरो बजट ऋषि खेती, प्राकृतिक खेती में टमाटर की बंपर उत्पादन लिया जा सकता है। देसी टमाटर की नस्लें जीरो टिल फार्मिंग में प्राकृतिक रूप से लगने के बाद उत्पादन देने लग जाते हैं। भारतीय देसी टमाटर की नस्ल की खेती करने की आवश्यकता है। चेरी टमाटर स्वाद में भी उत्कृष्ट रहता है। और खाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है।

किसान जीरो टिल जीरो बजट ऋषि फार्मिंग में कुंदरू की खेती अवश्य करें।

कुंदरू बेल वर्गी की फसल है। एक बार बेल लगा देने पर खेती में अच्छे फल देते है। खेती में मचान बनाकर की जा सकती है। कुंदरू में जैविक कार्बन से अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। खरपतवार या फसलों के अवशिष्ट पदार्थ के मंचिंग हमें ऋषि खेती में करनी चाहिए।

केला पपीता सहजन की जीरो टिल जीरो बजट पद्धति से ऋषि खेती, प्राकृतिक खेती करें

मध्यम ऊंचाई के पेड़ जैसे अमरूद केला पपीता सहजन की खेती की जा सकती है। खेती में मध्यम ऊंचाई के पेड़ लगाने से खरपतवार की मात्राएं कम होती चली जाती है। इस तरह भूमि पूरी तरह से जैविक कार्बन अवशिष्ट पदार्थ से मंचिंग को जाता है। भूमि की उपजाऊ क्षमता बढ़ जाती है। भविष्य में साग वर्गीय सब्जियों की खेती कर लाभ कमाया जा सकता है।


उपरोक्त फसलों की खेती के अलावा अलग-अलग मध्यम और बड़े पेड़ की खेती, मिश्रित खेती, हल्दी, अदरक, जिमीकंद, अरबी, टेपियोका, प्याज, आलू इत्यादि फसलों की भी खेती आसानी से की जा सकती है। गेहूं ,चना, मक्का, मटर आदि की ग्रीष्मकालीन फसलें भी ऋषि खेती जीरो टिल जीरो बजट फार्मिंग में की जा सकती है।

किसानों को जीरो टिल जीरो बजट ऋषि खेती फार्मिंग से लाभ कौन कौन से है।

  1. किसान kisan ऋषि खेती की शुरुआत करें। तो इन्हें किसी भी प्रकार के रासायनिक और कीटनाशक पदार्थ का उपयोग नहीं करना है। खेत को पूरी तरह से जैविक विधि से फसलों के अवशेष, खरपतवार के अवशेष से भूमि को मंचिंग से खरपतवार का नियंत्रण होता है।
  2. फसलों के अवशेष से भूमि को मंचिंग करके रखना ऋषि खेती कि प्राथमिक प्राथमिकता है। अवशेष पदार्थ के मंचिंग से भूमि के जैविक सूक्ष्म जीवाणु केंचुए का विकास क्रम निरंतर होता रहता है। 
  3. भूमि के तापमान नियंत्रित रहते हैं। और जल धारण क्षमता बनी रहती है। जल निकासी क्षमता बनी रहती है। साथ ही साथ जैविक कार्बन की मात्रा बढ़ने से भूमि पूरी तरह से उपजाऊ जाती है।
  4. जहर मुक्त अनाज फल सब्जी का उत्पादन होता है। जो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। और खाने में भी स्वादिष्ट रहता है।
  5.  जल निकासी व्यवस्था बन जाती है। और बारिश में भूमि कटाव नहीं होता है।
  6. देसी बीज का संग्रहण करने से बीज खरीदी की लागत शुन्य हो जाती है।
  7. फसल की बुवाई सही समय पर हो पाती है। जिस वजह से उत्पादन बढ़ जाता है।
  8. फसल में निरंतर रहने पर साल भर फसल  खेती से ली जा सकती है।
  9. खेत के भूमिगत जल स्तर बढ़ जाता है।
  10. बीज की बचत हो जाती है। खेत में अधिक मात्रा में बीज बोने की जरूरत नहीं पड़ती।

जीरो बजट ऋषि खेती, प्राकृतिक खेती करने से पर्यावरण की रक्षा हो जाती है। जल प्रदूषण को रोका जा सकता है। वायु प्रदूषण को कम की जा सकती है। और किसानों के शरीर में रसायन और कीटनाशक के प्रभाव ऋषि खेती करने पर पूरी तरह से समाप्त हो जाती है। और किसान kisan की स्वास्थ्य लाभ दिन प्रतिदिन बढ़ते चले जाती है।


खेती किसानी का उद्देश्य लालच में आकर खेती करना नहीं है। हमारा उद्देश्य पर्यावरण की सुरक्षा, जहर मुक्त भोजन व्यवस्था और किसानों को कृषि कार्य में लागत में कमी साथ ही प्राकृतिक ऋषि खेती को बढ़ावा देना।

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